कृषि विपणन की दशा का समीक्षात्मक मूल्यांकन
(सतना जिले के विशेष सन्दर्भ में)
डॉ. सुषमा चौधरी
अतिथि विद्वान (अर्थशास्त्र), शासकीय महाविद्यालय, नागौद, सतना (म.प्र.)
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
कोई भी देश जहॉ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हो तथा कृषि ही उस देश की जनसंख्या के अधिकांश भाग के भरण-पोषण का एक मात्र आधार हो उस देश की सरकार का यह उत्तरदायित्व होता है कि इसकी उन्नति पर विशेष ध्यान दे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अपनी सरकार ने कृषि विकास के महत्व को स्वीकारते हुए योजनाओं मे इसको मुख्य स्थान दिया। फलस्वरूप हरित क्रान्ति का सृजन और चलन हुआ, आधुनिक तकनीकी युक्त कृषियन्त्रों, कृषि उपकरणों, उन्नत बीजो का प्रचलन तथा रासायनिक उर्वरको के उपयोग में वृद्धि ने उत्पादन तथा उत्पादकता के स्तर को समुनन्त किया। कृषि के उन्नत के साथ कृषि विपणन व्यवस्था का उन्नत होना आवश्यक है, क्योंकि यह अनुभव किया जाने लगा है कि कृषि उत्पादों के विपणन का उतना ही महत्व है जितना स्वतः उत्पादन का वस्तुतः विपणन की क्रिया का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसके द्वारा उपभोग और उत्पादन में सन्तुलन ही नही वरन् अधिक विकास का स्वरूप भी निर्धारित होता है।
KEYWORDS: कृषि विपणन, समीक्षात्मक मूल्यांकन, सतना-
INTRODUCTION:
सामान्य तौर पर विपणन शब्द का तात्पर्य उन सभी विपणन कार्यों एवं सेवाओं के करने से है, जिनके द्वारा वस्तुएँ उत्पादक से अंतिम उपभेक्ता तक पहुंचती है, इसके अंतर्गत विपणन की सभी सहयोगी प्रक्रियाएँ एकत्रीकरण, पैकेजिंग, परिवहन, संग्रहण, श्रेणी चयन एवं मानकीकरण, वित्त जोखिम प्रबंध, विज्ञापन, आदि सम्मिलित होती है, उत्पादन को उपभोग से जोड़ने वाली श्रृंखला की समस्त कड़ियाँ विपणन में सम्मिलित होती हैं।
प्रो. थामसन के अनुसार:- कृषि विपणन के अध्ययन में वे सभी कार्य एवं कच्चामाल एवं संस्थाएं सम्मिलित होती हैं जिनके द्वारा कृषकों के फार्म पर उत्पादित खाद्यान्न, कच्चा माल एवं उनसे निर्मित माल का फार्म से उपभोक्ताओं तक संचालन होता है।
प्रो. अबोट के अनुसार:- कृषि विपणन से तात्पर्य उन सभी कार्यों से होता है, जिनके द्वारा खाद्य वस्तुएँ एवं कच्चा माल फार्म से उपभोक्ता तक पहुंचता है।
सतना जिले में भी कृषि विकास सम्बन्धी इन योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ यहॉ की जर्जर अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास तो किया गया, और यहॉ कि वसुन्धरा को सुजलाम् सुफलाम् की सार्थक परिधि के लाने के लिए सिंचाई की अनेक योजनाओं के साथ तलाबों जैसी सिंचाई परियोजना का क्रियान्वयन हुआ। फलतः के क्षेत्र में भू-भाग भी समुन्नति की ओर अग्रसित हुआ।
कृषि के उन्नत के साथ कृषि विपणन व्यवस्था का उन्नत होना आवश्यक है, क्योंकि यह अनुभव किया जाने लगा है कि कृषि उत्पादों के विपणन का उतना ही महत्व है जितना स्वतः उत्पादन का वस्तुतः विपणन की क्रिया का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसके द्वारा उपभोग और उत्पादन में सन्तुलन ही नही वरन् अधिक विकास का स्वरूप भी निर्धारित होता है।
कृषि विपणन की दशा का समीक्षात्मक मूल्यांकन (सतना जिले के विशेष संदर्भ में) विषय पर अभी तक शोध कार्य नहीं किया गया है। इस विषय कि सम्बन्धित बघेलखण्ड में कृषि विपणन पर डॉ0 ई.जकारिया के निर्देशन में डी.एस. तिवारी द्वारा शोध कार्य बघेलखण्ड कृषि विपणन’’ पर किया गया है, तथा डॉ0 श्रीमती दीपा स्तनास्तव के निर्देशन में आर.पी. तिवारी द्वारा उदारीकरण के पश्चात् कृषि विपणन की दशा का आलोचनात्मक मूल्यांकन ’’(सतना जिले के विशेष संदर्भ में) विषय पर भी किया गया है।
चूॅकि यह शोध कार्य मेरे शोध क्षेत्र सीमा के बाहर का तथा एक दशक पुराना हो चुका है, आज विपणन की समस्याएॅ आवश्यकताएॅ जहॉ की तहॉ बनी हुई है। अतः इस विषय पर नए सिरे से शोध कार्य की आवश्यकता को देखते हुए मैने सतना जिले में कृषि विपणन की दशा का चुनाव किया है, जिसमें कृषि क्षेत्र कृषि विपणन के विकास में बाधाएॅ व उदासीनता पर नवीन शोध एंव सुझाव दिया जा सकेगा।
बघेलखण्ड में कृषि विपणन साहित्य पर सन् 1988 में तथा उदारीकरण के पश्चात् कृषि विपणन की दशा का आलोचनात्मक मूल्यांकन (सतना जिले के विशेष संदर्भ में) विषय पर 2010 में शोध कार्य किया गया है। पूर्व में इस विषय से सम्बन्धित कृषि विकास, कृषि विपणन, कृषि के प्रकार, कृषि से प्राप्त होने वाली आय, सिंचाई, कृषि औजार यंत्र आदि तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। शोध कार्य करते हुए कृषि विपणन का स्वरूप परिवर्तन कृषि व्यापार एवं व्यवसाय से आय बढ़ाने के लिए सुझाव दिया गया है। कृषि विपणन के अन्तर्गत भण्डारण, विनिमय, क्रय-विक्रय के साथ-साथ उपभोग उत्पादन क्रियाओं को प्राथमिकता प्रदान की गई है। कृषि के सम्बन्धित अनेक क्रियाएॅ संचालित होती है। शोधग्रंथ में कृषि उत्पादक तथा अन्तिम उपभोक्ता दोनों कड़ियो को जोड़ने का प्रयास किया गया है। परन्तु समीक्षा के बारे में कोई स्थान नहीं दिया गया है।
कृषि विपणन पद्धतियॉ तथा इसमें परिवर्तन प्रदेश के अन्य जिले में सतना जिले के कृषि विपणन का तुलनात्मक अध्ययन पर शोध कार्य कर कृषि भण्डारण, कृषि विपणन, कृषि परिवहन, कृषि नीति आदि सुविधायें प्रदान किये जाने के साथ ही कृषि विपणन व्यवस्था को विकसित किया जाएगा, इससे सम्बन्धित सुझावों को कृषि विपणन के पिछड़ेपन को दूर करना, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, कृषि विपणन तकनीक में सुधार कृषि उपज में वृद्धि एवं संग्रहण किये जाने का प्रयास करने के साथ-साथ कृषि विपणन के परम्परागत पद्धतियों के स्थान पर कृषि विपणन पद्धतियों में वर्तमान तकनीक उपलब्ध कराए जाने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव दिए जायेगे, कृषि विपणन में परिवहन एवं यातायात का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
सतना जिले को प्रदेश एवं देश के कृषि विपणन बाजार से जोड़ने हेतु आवश्यक सुझाव के साथ-साथ कृषि मूल्यों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण नीति निर्धारित की जायेगी। कृषि विपणन भी उपर्युक्त महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ-साथ कृषि उत्पादन का परिसंस्करण, कृषि परिसंस्करण हेतु प्रमुख नीतियो यथा ‘कृषि’ उत्पाद को सुखाना, विपणन के लिए उपलब्ध कराना एवं वित्तीय सुविधाएॅ उपलब्ध कराए जाने का प्रयास किया जाएगा। शोध क्षेत्र के कृषि विपणन की अपार सम्भावनाएॅ होते हुए भी यहॉ की कृषि विपणन भी व्यवस्था ठीक नहीं है।
पूर्व शोध की समीक्षा
कॉनराय एट आल (2001) भारत में ग्रामीण कृषक परिवारों के पास आय के साधन के पशु उपलब्ध है। राष्ट्रीय स्तर पर पशुधन की आबादी बढ़ी है हालांकि एक क्षेत्रीय पैमाने और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में विशेष रूप से स्थिति बहुत अलग और अधिक जटिल है, उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्र के भीतर पशुधन बढ़ी जाती है तथा शहरी क्षेत्रों में पशुधन की आबादी कम होती है। जिससे ग्राीमण किसानों की स्थिति सुधर रही है।
ब्रिजेन्द्र पाल सिंह (2000) भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है। इसके विकास से अर्थव्यवस्था में दृढ़ता आती है। राष्ट्रीय आय में इसका योगदान 34 प्रतिशत के आसपास है। गत वर्षो में खाद्यान तथा व्यावसायिक फसलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाले तत्वों में प्राकृतिक और आर्थिक दोनो महत्वपूर्ण है। विगत दो-तीन दशकों में भारत में द्वितीयक क्षेत्र एवं तृतीयक क्षेत्र को तीव्र गति से विस्तार हुआ है प्रभावी देश की कार्यशील जनसंख्या का 52 प्रतिशत प्राथमिक क्षेत्र पर आश्रित है। देश में कृषि 115.5 मिलियन कृषक परिवारों की आजीविका का माध्यम है। यहाँ तक कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद का लगभग 15 प्रतिशत भाग कृषि व उसकी सहायक क्रियाओं से प्राप्त होता है। भारत में अनेक महत्वपूर्ण उद्योग प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर देश की 1.21 अरब से अधिक जनसंख्या के खाद्यान व खाद्य पदार्थो की आपूर्ति कृषि क्षेत्र से ही की जाती है। करोड़ों पशुओं को प्रतिदिन चारा कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होता है।
डॉ. आर. के. भारतीय (2006) भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर लघु तथा सीमांत कृषकों खेतिहर मजदूरों तथा अन्य श्रमिकों, शिल्पियों, व्यवसायिक एवं सेवा करने वाले परिवारों का ही बाहुल्य है। परन्तु आज भी इनमें से अधिकांश परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं! अतः यह कहा जा सकता है कि भारत का समाजिक एवं आर्थिक विकास ग्रामीण क्षेत्रों के बुनियादी विकास पर ही आधारित है। ग्रामीण विकास की अनेकोनेक समस्याएं जिनमें प्रमुख रूप से आर्थिक अधोसंरचना, कृषि, लघु एवं कुटीर उद्योग व समान्वित विकास की समस्याएं है!
शोध प्रविधि
सतना जिले में स्थित मण्डियों में से निदर्शन विधि का अनुप्रयोग करते हुए जिले से सभी मण्डियों का अध्ययन कर कुछ चिन्हित मण्डियों को प्रतिक अध्ययन के लिए चुना जाएगा। मण्डियों के चयन में उनकी स्थिति कार्यक्षेत्र आदि का ध्यान रखते हुए जिले में सभी तहसीलों में से एक-एक विनियमित मण्डी तथा जिले में एक प्राथमिक स्तर में गांव में स्थित विनियमित मण्डी का चयन कर अध्ययन किया जावेगा।
मण्डी सम्बन्धी तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रश्नावली बनाकर मण्डी समिति के पदाधिकारियों एवं मण्डी सचिवो से सम्पर्क अभियान द्वारा विषय से सम्बन्धित जानकारी एकत्रित कर उपक्रम बनाया जाएगा। कृषि सम्बन्धी उत्तर प्राप्त करने के लिए स्तरवार निदर्शन विधि का प्रयोग किया जावेगा। अन्त में सांख्यिकी विश्लेषण के बाद शोधकर्ता द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत कर जाएगा इस सम्बन्ध में एकत्रित किए गये प्राथमिक द्वितीयक एंव गौर आंकड़े हेतु किया गया है।
कृषि विपणन तकनीकी में सुधार, कृषि उत्पादन में वृद्धि, मध्यस्थों की समाप्ति, कृषि विनिमय हेतु वित्तीय सुविधाएॅ, कृषि उत्पाद मूल्य में वृद्धि तथा कृषि विपणन का व्यावसायिक कार्य, व्यवसायिक अनुभव, पूॅजी निवेश, छोटे कृषि व्यापारियों को संरक्षण कृषि के लिए वित्तीय सुविधाएॅ, व्यावसायिक प्रशिक्षण, यातायात का विकास, भण्डारण प्रक्रिया में सुधार, व्यावसायिक स्थिति का मूल्यांकन, मूल्य में स्थिरता जैसे अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। कृषि विपणन में जमाखोरी की समाप्ति, कृषि क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र मानने के साथ-साथ गांवो में कृषि उत्पाद के विक्रय हेतु आवश्यक सुविधाएॅ प्रदान करने का प्रयास होगा। कृषि विपणन क्षेत्र में सहाकरी समितियों के विकास हेतु कृषि विपणन क्षेत्र में सहकारी समितियों के विकास हेतु सरकारी एजेन्सी द्वारा कम मात्रा का पूर्व निर्धारण उत्पादक व व्यापारियों से कृषि आय में वृद्धि जैसे उपायों को अपनाने से कृषि विपणन तथा कृषि उपज में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी। कृषि उपकरणों वित्तीय सुविधाओं में वृद्धि के साथ ही अन्य आवश्यक मूलभूत सुविधाओं में विकास हेतु उपाय किये जायेगे। सहकारी विपणन व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया जाएगा उत्पादको को उचित मूल्य दिलाए जाने के साथ ही पूंजीवादी बाजार को रोकने का प्रयास किए जाएगा, साथ ही कृषि विपणन व्यवसाय का विस्तार किया जाएगा, विस्तार के साथ ही देश वे अन्य विकसित राज्यों की कृषि विपणन के समान किया गया है।
शोध के उद्देश्य %&
· कृषकों एवं सहकारी बैंकों की अर्थिक दशाओं का अध्ययन कर उनका जीवन स्तर ऊपर उठाने हेतु आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना।
· सहकारी बैंकों के योगदान द्वारा ग्रामीण कृषि प्रक्षेत्र की समस्याओं को दूर करने का समन्वित प्रयास भी है? इसके अन्तर्गत न केवल लघु कृषकों की पहचान की जा सकेगी वरन् उन्नयन हेतु आवश्यक साधन/सुझाव उपलब्ध कराना।
· जिले में संचालित सहकारी बैंकों के विभिन्न योजनाओं से लाभान्वित कृषकों के आर्थिक विकास की दर प्राप्त कर उसकी समीक्षा करना।
· संस्थागत बैंकों की कार्यप्रणाली एवं ब्यूह रचना का अध्ययन।
· केन्द्रीय सहकारिता बैंक के द्वारा दी जाने वाली सहायता एवं सहयोग के फलस्वरूप हितग्राहियों के रोजगार प्रभाव का अध्ययन करना।
· संस्थागत बैंकों द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का अध्ययन करना।
· कृषकों की आर्थिक दशा के सफलता हेतु समुचित साधनों एवं उपायो को सुझाना जिससे भविष्य में इन योजनाओं को और प्रभावशाली बनाया जा सके।
शोध सीमाएँ:
’’सितीर्षुः दुस्तरम मोहा दुहुपेनाडस्मि सागरम्’’ ज्ञान की छोटी पनसुइया नौका से शोध के महान् सागर को पार करने की इच्छा स्वरूप मेरे प्रयास से यह शोधसामग्री निश्चय ही अध्ययन की विविध सीमाओ में संकलित है। आर्थिक विकास एक ऐसी विषयवस्तु है जिसके प्रत्येक अंश पर शोध ग्रन्थ की रचना की जा सकती है, ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास का स्पर्श कर आरंभिक अध्ययनकर्ता विविध रूपों में वर्णन करते है। फलतः आर्थिक विकास के किसी एक क्षेत्र को न लेकर विभिन्न स्वरूप को लेकर अध्ययन किया गया। व्यक्तिशः अध्ययनकर्ता होने के कारण अर्थ तथा समयावधि की अरूपतावश आर्थिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों का विशद विश्लेषण सम्भव नहीं हो सका है फिर भी विषय वस्तु को पर्याप्त रूप - में स्पष्ट किया गया है।
अध्ययन के सीमा की कड़ी में आर्थिक विकास के अन्तर्गत आने वाली सभी उत्पाद वस्तुओं के उत्पादन की स्थिति पर समान ध्यान नही दिया गया है।
प्रस्तुत शोध की सीमाए सतना राजस्व क्षेत्र अंर्तगत आने वाले विभिन्न क्षेत्रों में केन्द्रित है। अध्ययन का क्षेत्र मूलतः 2005 के बाद की जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का वित्तीय प्रबंधन एवं कृषि विकास में योगदान नीतियों खासतौर पर ऋण व वसूली नीतियों पर केन्द्रित है। इस तरह अध्ययन जिले के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित बैंकों एवं उनकी ऋण व वसूली नीतियों के गतिविधियों पर केन्द्रित है।
विषयवस्तु मे अनावश्यक विस्तार से बचने के लिए और सहकारी बैंक की ऋण वसूली नीतियों साख के शोध परिणाम हासिल करने के लिए अध्ययनकर्ता ने अध्ययन का केन्द्र विविध धर्मी सतना जिले की सहकारी कृषि एवं ग्रामीण बैंक को बनाया गया है।
शोध का महत्व एवं कठिनाइयॉः
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है जिसके समुचित विकास के बिना किसी भी प्रकार की आम जीवन से जुड़ी विकास की गतिविधियों की परिकल्पना नहीं की जा सकती। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाली जानकारियों के अनुसार देश का सर्वाधिक वर्ग कृषि से संबंधित है देश की कृषि व्यवस्था और कृषि नीति ऐसी है कि कृषि अभी भी पुरातन नीतियों पर आधारित है शासन और प्रशासन स्तर पर दीर्घकालिक सहकारी बैंकिंग नीतियॉ निर्मित होती है। जिनका संबंध कृषि क्षेत्र की वास्तविकता से नहीं होता। कोरे सिद्धंात पर आधारित सहकारी बैंकिंग की नीतियों के चलते कृषि आज भी नई परम्पराओं को स्वीकार नहीं कर पाती। देश के कुछ क्षेत्रों को अगर छोड़ दे तो कृषि फर्म और कृषक का नाम आते ही एक विचित्र पीड़ा का बोध होता है। भारत का किसान आज भी दो जून की रोटी के लिए मोहताज है उर्वरताविहीन खेत, लगातार घटते कृषि संसाधन, पढ़े लिखे विकासशील लोगों का कृषि से दूर हटना भौतिक संसाधनों की बढ़ती कीमतें समय अनुकूल बीज खाद एवं अन्य सहायक वस्तुए कृषि यंत्रों की भारी कीमतें उत्पादन विक्रय की सार्ख क नीति का आभाव आदि के चलते सतना जिले की कृषि अभी भी अधोगामी है।
विगत वर्षो में ग्रामीण विकास के उन्नयन के लिए जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा उठाए गये प्रभावी कदमांे में सबसे महत्वपूर्ण जिले के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि बैंकों, जिनके माध्यम से कृषिकों कृषि उत्पादों का समर्थन मूल्य मिलने की गारंटी दी गई है।
प्रस्तुत अध्ययन जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का वित्तीय प्रबंधन एवं सतना जिले के आर्थिक विकास में योगदान पर केन्द्रित है। जिसके पृष्टिभूमि में मूलतः अध्ययन में इन विभिन्न कारणों का भी संकेतिक विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की सहभागिता को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत शोध अध्ययन के महत्व का प्रतिपादन किया जा सकता सके।
अध्ययन के दौरान विभिन्न प्रकार की कठिनाईयॉ जिनका संबंध विषय सामग्री के चयन से रहा है। आपेक्षित समांकों संकलन न होने से विषय वस्तु मंे गहराई में जाना, सत्यता की परख करना एक जटिल समस्या रही। अध्ययन केन्द्र सम्पूर्ण सतना राजस्व क्षेत्र होने के कारण भी हर जगह का प्रतिनिधित्व स्वाभाविक रूप से सम्भव नहीं हो सका है। जिले में छोटे-छोटे/ग्राहकों/प्रतिनिधियों के होने के कारण आपेक्षित मात्रा में सही परिणाम नहीं हो पाता जब कृषिको/उपभोक्ताओं के पास मात्र भरण पोषण के लिए कृषि उत्पाद होता है ऐसे में ग्रामीण आर्थिक विकास की परिकल्पना करना हास्यास्पद सा है अध्ययन के दौरान देखा गया कि सतना राजस्व क्षेत्र के 70 प्रतिशत व्यापारियों का संबंध बैंकों से नहीं बल्कि छोटे साहूकारों से है कृषि ऋण के कारण कृषि ऋण का समय से भुगतान न करने के कारण कृषक मूलतः कृषि नीतियों से अनजान बने रहते है और स्वाभाविक रूप से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने में कतराते है। राजस्व क्षेत्र के बैंक अधिकारी कर्मचारियों के संबंध कृषकों से किसी भी प्रकार से नहीं दिखते कर्मचारियों का संबंध कागजों की खाना पूर्ति से है। जिस कारण कोरे समंकों पर आधारित अध्ययन क्षेत्र की कृषि ऋण की दशा है ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है अध्ययन के दौरान विभिन्न प्रकार की विसंगतियों का सामना करना स्वाभाविक सा रहा।
निष्कर्ष
कृषि विपणन तकनीकी में सुधार, कृषि उत्पादन में वृद्धि, मध्यस्थों की समाप्ति, कृषि विनिमय हेतु वित्तीय सुविधाएॅ, कृषि उत्पाद मूल्य में वृद्धि तथा कृषि विपणन का व्यावसायिक कार्य, व्यवसायिक अनुभव, पूॅजी निवेश, छोटे कृषि व्यापारियों को संरक्षण कृषि के लिए वित्तीय सुविधाएॅ, व्यावसायिक प्रशिक्षण, यातायात का विकास, भण्डारण प्रक्रिया में सुधार, व्यावसायिक स्थिति का मूल्यांकन, मूल्य में स्थिरता जैसे अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। कृषि विपणन में जमाखोरी की समाप्ति, कृषि क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र मानने के साथ-साथ गांवो में कृषि उत्पाद के विक्रय हेतु आवश्यक सुविधाएॅ प्रदान करने का प्रयास होगा। कृषि विपणन क्षेत्र में सहाकरी समितियों के विकास हेतु कृषि विपणन क्षेत्र में सहकारी समितियों के विकास हेतु सरकारी एजेन्सी द्वारा कम मात्रा का पूर्व निर्धारण उत्पादक व व्यापारियों से कृषि आय में वृद्धि जैसे उपायों को अपनाने से कृषि विपणन तथा कृषि उपज में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी। कृषि उपकरणों वित्तीय सुविधाओं में वृद्धि के साथ ही अन्य आवश्यक मूलभूत सुविधाओं में विकास हेतु उपाय किये जायेगे। सहकारी विपणन व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया जाएगा उत्पादको को उचित मूल्य दिलाए जाने के साथ ही पूंजीवादी बाजार को रोकने का प्रयास किए जाएगा, साथ ही कृषि विपणन व्यवसाय का विस्तार किया जाएगा, विस्तार के साथ ही देश वे अन्य विकसित राज्यों की कृषि विपणन के समान किया जाएगा।
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Received on 30.03.2023 Modified on 10.04.2023 Accepted on 17.04.2023 © A&V Publication all right reserved Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(1):31-36. DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00005 |